स्नान करते समय सभी लोग अपने पाप गंगा मे धो देते है। इन्ही सब पापो का बोज गंगा से सहा नही जाता और वो भगवान से कहती है, ''प्रभो, मै इस पापसे मुक्ती कैसे पाऊ ?''
संत जब गंगा मे स्नान करेंगे तब तुम्हारे सारे पाप उनकी ज्ञानाग्नीत भस्म हो जायेगे । गंगा को निष्पाप करने के लिए संत गंगा मे तीर्थस्नान करते है । जो ज्येष्ठ है, श्रेष्ठ, शुचिर्भूत है, वंदय है वह तीर्थरुप है । भगवान की चरणतीर्थ गंगा है, लीलातीर्थ यमुना और ह्दयतीर्थ सरस्वती है । इन त्रिवेणी सरिताओं का सरताज गोदावरी है । त्र्यंबकेश्वर गोदावरी का मूलस्थान है, जन्मस्थान है । वही से वह चक्रतीर्थ होकर नाशिक में गंगापूर पहुच गया ओर बाद में पंचवटी में विश्राम किया। त्र्यंबकेश्वर गोदावरी का ऋषीकेश है और नाशिक हरिद्वार है । कुशावर्त से निकलने वाली गोदावरी, रास्ते मे छोटे नदी-नालियो को अपने मे समाते हुये नाशिक के रामकुंड मे अवतार लेती है । वैष्णव संत यही स्नान करके अपने पुण्यकी गठरी जमा करते है । आदिनाथ भगवान त्र्यंबकराज नाथपंथके गुरूपीठ है । निवृत्तीनाथ तथा ज्ञानेश्वर इसी गुरूकूल के विद्यार्थी है । श्री. ज्ञानेश्वर ह्दय से शक्ति, शरीरसे शैव तथा सभाओंमे वैष्णव थे । ज्ञानेश्वरजीने भागवत धर्म का हरिपाठ लिखा है । उनकी लिखी ज्ञानेश्वरी महाराष्ट्र का वेद है । ज्ञानेश्वरजी का गुरूमंदिर आंळदी मे है । गुरूकृपा के कारण ज्ञानेश्वरजीने इंद्रायणी नदी मे डुबकी लगायी और उस काठपर उनकी समाधी लग गया । उनके गुरु भाई निवृत्तीनाथने गंगा में जलसमाधी लेल ली । ज्ञानेश्वरजी के ज्ञान की धारा ही गोदावरीसे बहती है। ऐसी संतो की श्रध्दा है ।