श्राध्द का मतलब

श्राध्द का मतलब क्या है । हमारी बरसोंसे चली आयी परंपराओं का स्वीकृत तत्व याने मनुष्य की मृत्यु होती है। परंतु उसकी आत्मा मरती नही और नाही वह नष्ट होती है । हमारी सभ्यतामें माता-पिता के अपने अपत्यों के लिये ममता का महत्त्व है । वैसे ही माता - पिता के जिवित रहनेपर उनके पुत्रों की भी उनके प्रति कुछ जिम्मेदारियाँ है । जैसे की बुढापे में उनकी पुरी देखभाल करना उनका मान - सन्मान करना आदि । माता - पिता के मृत्यु पश्चात पुत्रोंकी कुछ जिम्मेदारियाँ है । उनमेसे महत्वपूर्ण श्राध्द है । (श्रध्दासे पुर्वसुरीयोंका स्मरण याने श्राध्द) इसकी एक विशेष पध्दती हमारे बुजुर्गो नेरखी है । श्राध्द अगर विधिवत किया जाये तो पित्तरो को संतोष प्राप्त होता है । उनके वारीसों को लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य, शक्ति एवं भौतिक सुखोंकी धनसंपदा की उनके आर्शिवादोंसे प्राप्ती होती है ।

मृत माता - पिता के विधिवत श्राध्द को हमारे परंपराके शास्त्र में 'पितृयज्ञ' कहा जाता है । हमारे धर्म शास्त्र में पित्तर अपने परिवार का उनके मृत्यु के बाद भी ध्यान रखते है । उनकी रक्षा करते है । अत: वारिसों की यह अत्यंत महत्वपुर्ण जिम्मेदारी है की वे अपने पित्तरों का श्रध्दासे स्मरण करें, उन्हे खुख रखे एवं उनके आर्शिवादोसे अपने जीवन में भी खुशहाली लायें ।

श्रध्दा की विविध पध्दतीयाँ है । उनकी जानकारी इस तरह है ।

  • और्ध्वदेहिक या अंत्येष्टि - यह विधी मृत मनुष्य के परिवारके सदस्योंने करनी होती है । इसके लिये एक विशेष तिथि जिसदिन व्यक्ति की मृत्यु हुई अत्यंत महत्वपूर्ण है । उस तिथीपर हरएक वर्षश्राध्द का विधि करना होता है । दुसरे शब्दोमें इसे 'संवत्सरकि श्राध्द' कहते है ।
  • काम्य श्राध्द - श्राध्द का परंपरासे चलती आयी विधी शास्त्र के अनुसार करते हुए किसी एक विशेष इच्छा को दिलमें खखकर उस इच्छापूर्ती के हेतुसे किए हुए श्राध्द को 'काम्य श्राध्द कहते है । नारायणबली - नागबली एवं त्रिपिंडी इन तीनों श्राध्दों को 'काम्य श्राध्द' या 'महालय श्राध्द' कहते है । भारतीयों के भादो महिने के कृष्ण पक्षमें जो श्राध्द किये जाते है उन्हे 'महालय श्राध्द' कहा जाता है । इसीका दुसरा नाम 'परवण श्राध्द' है । हरेक पंचाग या जंमी में भादो महिने के पन्नेपर शास्त्रानुसार श्राध्द कैसा और कब किया किया जाये उसकी ब्यौरेवार जानकारी होती है ।
  • एकोदिष्ट श्राध्द - त्रिपिंडी श्राध्द को ही 'एकोदिष्ट श्राध्द' कहते है ।
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