सिंहस्थ महापर्वणी

हे गंगे

अब त्वद्दर्शनान्मुक्ति: न जाने स्नानजं फल

गंगा के अस्तित्व के कारण विश्व तीर्थरुप बना है । सिंहस्थ का मतलब है सूर्य, चंद्र व गुंचा का त्रिवेणी संगम । वृध्द गोदासे मिलने के लिए गंगा विश्वनाथ के साथ कुशावर्त मे प्रकट हुई है । गंगा और गोदा लहरोका मिलाप कुशावर्त मे होने के कारण जगन्नाथ पंडितोने अलग गोदावरी लिखी नही है ।

सिंहस्थ कहा होना चाहिए नाशिक या त्रिबंकेश्वर में ?

गंगा नदी का किनारा तथा घाट नाशिक नगरी मे है, परंतु उगम त्रिबंकेश्वर मे है । पवित्र गंगा में स्नान करने से चिंता, शंका तथा सांसरिक विवंचनाओं से मुक्ती मिलती है । भगवानजी की चरणतीर्थ गंगा है । लीलातीर्थ यमुना है और हृदयतीर्थ सरस्वती है । परंतु ये त्रिवेणी संगम गोदावरी में समाया हुआ है । संतो के स्नान से गोदा पाप मुक्त होती है ।

संत ज्ञानेश्वर महाराज का गुरुमंदिर त्रिबंकेश्वर मे, ध्यानमंदिर पंढरपूर में तथा समाधी मंदिर आंळदी मै है ।
शाही जलसा (मिरवणूक) ज्ञान की शोभायात्रा है ।
सांसरीक नग्नता रोग है तो ज्ञान की नग्नता योग है ।
अपने देह का अभिमान गंगामे त्यागने के लिए यह शाही जलसा है ।

सांधूओंके हाथ मे शस्त्र क्यो ?
शास्त्र तथा धर्मरक्षण के लिए ।
धर्म, ज्ञान, वैराग्यका रंग है केशरी।
भोगी केशरी रंग पसंद नही तथा योगी को लाल रंग पसंद नही । ज्ञान के मानसरोवर मे स्नान करनेवाले परमंहसोंका देश भारत है ।

सिंहस्थ परमीसोंका पर्वकाल है ।
उन सभी पर्वणी परमहंसोको हमारा अनंत प्रणाम !!

श्री
।। सिंहस्थ महापर्वणी एक दार्शनिक विश्लेषण ।।
।। कुशावर्त समं तीर्थ नास्ति ब्रम्हांड गोलके ।।

त्रिबंकेश्वर तीर्थ क्षेत्र है । पांडवोका धर्मक्षेत्र है । कौरवोंका कुरुक्षेत्र है । यहाँ सदियोसे पाप-पुण्य का युध्द चला आ रहा है । हारे हुए पाप इसी भूमीपर शरणागती लेते है । यही मोक्ष का मार्ग मिलता है । संतो की पुण्योंसे ये भूमी पावन है । पापोंका अंत करने वाली त्र्यंबक पुण्यभूमी है, धर्मभूमी है तथा तपोभूमी है।

।। सलिलस्यच अद् भुतात प्रभावात ।।

गंगा, ब्रम्हद्रव तथा धर्मद्रव है । यहा का पानी तीर्थरुप है । गंगा ब्रम्हदेव के कमंडलुका आद्य जल है । गंगा की पवित्र जल से ब्रम्हदेवने आवमन किया, वही जल भगवान शंकर की जटाओं से प्रगट हुआ तथा वही जलधारा आगे जाकर विष्णू की चरणतीर्थ बन गयी । यह गंगा ने जब वसुंधरा को अलिंगन दिया तब उसका जल पवित्र हो गया । जल से पाप धुल सकता था । वह गंगा संत तुकारामजी के अभंग स्थापन्न हुई तब इंद्रायणीने गंगासे घबराकर अभंग वापस कर दिये । संत ज्ञानेश्वर की समाधी भी गंगा किनारे ही हुई थी । ज्ञानगंगा की बहन यही गंगा है ।
गंगा का अदभुत तेज । गंगाके प्रवाहका ज्योर्तिमय स्वरुप ।

ज्योर्तिलिंग (भगवान शंकर) के जटाओंसे निकली हुई जलधारा गंगा है। सुर्य, चंद्र तथा अग्नीने अपना पापदाहक ज्ञानप्रकाश गंगा को प्रदान किया है।

। तीर्थ ब्राह्य मळ क्षाळे । सत्कर्मे अभ्यंतर उजळे ।।

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