कालसर्प योग शांति के बारे में अनेक गलत विचार समाज में हैं। हम इसका निवारण स्पष्ट कर रहें है कृपया इस पर ध्नाय दिजिए।
तिथी, वार, नक्षत्र, योग, कारण यह पंचांग के पाच अंग है। किसी बालक के जन्म के समय इसी में से किसी एक अंग में दोष रह जाये तो इस दोष का निवारण जनन शांति विधी द्वारा किया जाता है। जिस प्रकार हम मैले कपडे धोकर, साफ कर पुनःह परिधान करते है उसी प्रकार जनन शांति के नियम होते है। जनन शांति करने का सही समय बालक के जन्म पश्चात ११वा तथा १२वा दिन होता है। यह विधी करने के पश्चातही नामकरण विधी सपन्न होना चाहिए। परंतु आज की दौर में बालक की जन्म की खुशी में जनन शांति न करते हुए तुरंत ही नामकरण किया जाता है। आगे चल कर अगर व्यक्ती को किसी समस्या या कठिनाईं (आरोग्य, शिक्षा, उच्च शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय या विवाह) का सामना करना पडता है तब उसकी जनम पत्रिका किसी (थोडे बहुत शिक्षित) ज्योतिषी को दिखाई जाती है और अगर कोई दोष पत्रिका में उत्पन्न हुआ हो तो उसके निवारण की याचना की जाती है। वह ज्योतिषी कहता है इस समस्या के लिए कालसर्प, अमावास्या, मूळ, ज्येष्ठा आदि शांति करानी पडती है। अगर यजमान ने उपर कही गयी शांती की नहीं होगी तो जोतिषी को शांती तुरंत ही करवा लेना चाहिए कहता है। यजमान जोतिषी के कहने में आकर शांती करवा लेते है। उन्हें इससे २५ % फायदा जरुर होता है परंतु अधिकतम समय कौआ बैठने और डाल टुटने का समय एक ही होता है। परंतु पुजा विधी के कारण ही यह समस्या का हल हुआ है ये मानना निरर्थक है।
हमारा अनुभव कहता है की श्री क्षेत्र त्र्यंबकेश्वर आनेवाले भारत तथा अन्य देशोंसे आनेवाले १०० में से ८०% नागरीक इसी भ्रम कों मन मे लिए हुए आते है, इसे हम अज्ञान से सिवाय कुछ नहीं कह सकते। हमारा और एक अनुभव ऐसा है की यजमान को अगर पुजा से इच्छित लाभ प्राप्त न हो तो यजमान जिन्होंने पुजा की है उन्हें पुछने के बजाय त्र्यंबकेश्वर आकर हमें प्रश्न पुछते है। पुजा करके की लाभ न होने का हम उन्हे समाधानकारक क्या उत्तर दे ? इसी की बस यही मिसाल दे सकते है जैसे अगर किसी बिमार को डाक्टरने दवाई लिखकर देनें का बाद दवा दुकानदार का काम है उसके मुताबिक दवाईंया देना। अगर उस दवाईयों का उलटा असर हो जाये तो इसके लिए डाक्टर को या फिर दुकानदार को दोषी ठहराया जाये ये आप जैसे सुज्ञ तथा समझदार लोग खुद ही समझ सकते है।