आचार्य, साधू, संत, महंत व मंडलेश्वर यह धर्मसैनिक है। आद्यशंकराचार्य सम्राट है, मांडलिक है । शरीर, मन और वाणी पर जिनकी दण्डसत्ता वह त्रिदण्डी, दण्डी संन्यासी के हातो मे धर्मदण्ड होना चाहिए । सत्ता, संपत्ती, व भोग से भरा राजदण्ड खोकला होता है । धर्मसम्राट आद्यशंकराचार्यजी ने धर्मरक्षण के लिए चार मठ की स्थापना की । दसनामी साधू, संन्याशी, संत और महंत इन्हे मठानुशासनानुसार इकठ्ठा करते हुये आखाडो की सत्ता और प्रभुत्व सौप दिया । उन्मत सत्ता, दुर्बल ज्ञान, अंधा कानुन और चंचल लोकशाही धर्म के चार शत्रू है । यह धर्मदंडसे ही सीधे किये जा सकते है । उसी के लिए शस्त्र लगते है ।
।। शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्र शास्त्राचिंता प्रवर्तत ।।
हृदय मे धर्मश्रध्दा, श्रध्दा मे शास्त्रबल और शास्त्र के मुठीमें शस्त्र आवश्यक है । ज्ञान वैराग्यकी धार से धर्मशास्त्र और धर्मशासन शत्रुका बुध्दीवध कर सकते है । विरक्त साधूंओने भी धर्म के लिए खून बहाना पडता है । साधूओने अवैदिक बौध्दिक धर्मपंथोंसे लढाई छेडी थी । आखाडा के वेदांतमल्ल साधू धर्म के लिए लढे थे । वेदांत धर्म की धार है और मेज धारवाला धर्मही देश का आधार है । भारत मे पर्वकाल में आयोजित होनेवाले कुंभमेलोमे धर्मचितंन तथा ब्रम्हचितंनसे साधूओ की बुध्दीका तेज अधिक धारदार होता है । भ्रष्टाचार राजसत्ताका शत्रु है । गंगा स्नान से धर्म भी शूर्चिभूत होते है । साधूओके यह आखाडे धर्मरक्षण का परवाना है । रामकृष्ण परमहंसको समाधियोग सिखानेवाले साधू तोतापूरी इन्ही आखाडो मे से एक थे ।
विरक्त सांधूकी नग्न मिरवणूक किसलिए?
विदेह संतोकी नग्नता भगवान के निकट जाने का मार्ग है । यह शृंगार से डुबी अश्लीलता नही है । यह तो ज्ञान, वैराग्य तथा अनासक्तीकी सत्वपरीक्षा है । पानी में रहकरही कमल का फुल अलिप्तता सिखता है । भोग की नग्नता रोग है और ज्ञानकी नग्नता योग्य है । संतोकी यह विदेहवस्था सामाजिक अभिनंदनीय है ।
साधूओके इस जलसे में संतो की आराध्य देवता और उनके गुरू देवोंकी प्रतिमा भी पूजी जाती है । एक तरह से यह देवोंका जलसा है । देहवस्त्र का गंगा में विसर्जन का यह शाही महोत्सव है । शादी का जलसा, राष्ट्रदिन का जलसा, त्योहारोका जलसा निकल सकता है तो इन ज्ञान परमहंसोकी जलसे पर इतना निषेध क्यो? प्रपंच मे डुबे जनसमुदाय पर वैराग्य का महत्व अधोरेखित करने के लिए इस प्रकार के जलसे जाते है ।