आरती

त्र्यंबकेश्वर आरती

trimbakeshwarजय जय त्र्यंबकराज गिरीजानाथा गंगाधरा हो। त्रिशुलपाणी निलग्रीवा शशिशेखरा हो।
वृषभारुढा फणिभूषणा दशीभूज पंचानना हो। विभूतिमाळा जटा सुंदर गजचर्मांबर धरा हो ।।धृ।।

पडले गोहत्त्येचे पातक गौतमऋषींच्या शिरी हो। त्याने तप मांडिले ध्याना आणूनी तूज अंतरी हो।।
प्रसन्न होऊनि त्याते स्नाना दिधली गोदावरी हो। औदूंबरमुळीं प्रकटे पावन त्रैलोक्यातें करी हो।।१।।

धन्य कुशावर्ताचा महिमा वाचे वर्णू किती हो। आणिक ही बहु तिर्थे गंगाद्वारादिक हो।
वंदन मार्जन करिता त्याचे महादोष नासती हो। तुझिया दर्शनमात्रे प्राणी मुक्तीचे पावती हो ।।२।।

ब्रम्हगिरीची भावे ज्याला प्रदक्षिणा जरि घडे हो। ते ते काया कष्टे जय जय चरणी रुतती खडे हो।।

तव तव पुण्यविशेषे किल्बिष अवघे त्यांचे झेंडे हो। केवळ तो शिवरूपी काळा त्याच्या पाया पडे हो ।।३।।

लावुनिया निजभजनी सकळही परविसी मनकामना हो। संतती संपत्ती देसी अंती चुकविसी यमयामना हो।
शिव शिव नाम जपता वाटे आनंद माझ्या मना हो। गोसावीनंदन विसरे संसार भवयातना हो।।४।।

 

आरती गोदावरीची

Goda Aartiजय जय जय गंगे। जन अध ऊध भंगे। आरती ओवाळितो। अगा विमल तरंगे ।।धृ।।
गोवधें खिन्न झाला। ऋषि गौतम भारी। दुर्धर अनुष्ठान। केले ब्रम्हाद्रिशिरी।
होऊनि सुप्रसन्न। दृश्य केले शिवारी। जाणोनि अंत:करण। धन्य म्हणे त्रिपुरारी ।।१।।

दावाया चमत्कार। घाली वराह पोटी। एकाचि हा:हाकार। करिती तेहतीस कोटी।
सशोक ऋषिभर। दीन गौतम कोटी। स्थापिसी गंगाद्वार। माये मारु निघृष्टि ।।२।।

सदगति पितरांना। द्यावी आणुनी मनी। सबंधु राम आला। पंचवटी त्यागुनी।
मध्येच भेटी त्याला। देसी जगज्जननी। दया मी काय वर्णू। तिर्थे स्तापिसी दोन्ही।।३।।

निषाप करावया। तनु सरितानाथ। अनन्य शरण येई। विषमाक्षि पुरांत ।
संगमे शुध्द केले। जे कांत दिनानाथ। यथार्थ किती व्हाया। गंगा सागरख्यात ।।४।।

धन्य ते कुशावर्ती। जेथ पवित्र होती। असंख्य दोषी यांचा। विधी निर्माता मुर्ती।
नव्हे न म्हणू जरि। झाली गौतमा स्फुर्ती। पवित्र केले त्याते। भवसंशयाSवती ।।

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