जन्म मृत्यू का रहस्य वैचारिक लेख

मनुष्य का जन्म एवं मृत्यु रहस्यात्मक है । हमारे पुराने विश्वमें मशहूर धार्मिक ग्रंथोमे वेद उपनिषद एवं पुराणों में भी इस विषयपर ब्यौरेवार सुसंगत जानकारी है |

भगवान श्रीकृष्णने तो श्रीमदभगवत गीता में भी यही कहा है की एक दिन पैदा हुआ तो एक दिन मृत होगा और जो मृत होगा वह फिरसे जन्म लेगा । जन्म के लिये हमे कोई ठोस कारणों की जरुरत नही क्यों की सारे संसार में रोजाना हजारों की तादाद में मनुष्य जन्म लेते है और मृत भी होते है। परंतु पुर्नजन्म के लिये हमारे पास वैसे कोई ठोस गवाह नही है । इसलिये कुछ बाते हमारी परंपरासे चलती आ रही है । इसलिये उन्हे मान्यता देते है। हमारा धर्मशास्त्र कहता है की मनुष्य प्राणी का आत्मा आकार में अतिसुक्ष्म होता है इसलिये वह हमे इस आखोंसे दिखाई नही देता । महर्षि कपिलजी ने लिखा है की मनुष्य देह जो उसे उसके माता - पिता से मिला है वह त्रिगुणात्मक है । इसकारण मनुष्यके आत्मा में तीन अतिसुक्ष्म (अदृश्य) शरीर होते है । जब मनुष्य मृत होता है तब उसका दृश्य देह खत्म हो जाता है । परंतु अंतर का अदृश्य शरीर वैसाही रह जाता है । उसकी रिहाई या मुक्ति ब्रम्हज्ञान (अध्यात्मिक शक्ति) के बीना भी हो सकती है अगर वह सुक्ष्म शरीर सत्वगुणी होगा तो वह श्रेष्ठ श्रेणी में याने देवताओं के पास जायेगा और वही निवास करेगा । रजोगुणी सुक्ष्म देह दुबारा मनुष्य जन्म लेता है, और तमोगुणी शरीर इसी धरतीपर मनुष्य के नही परंतु प्राणी जीवोके रूप में फिरसे जन्म लेता है । यहॉ देह याने नश्वर शरीर नही, अजरामर आत्मा का जिक्र है । ऐसा श्रीमद् भागवत् गीता में स्पष्ट कहा हुआ है ।

श्रीमद् भागवत गीता मे एक कथा है । पालनहार प्रभु विष्णु के रक्षक नाम जयविजय था । एक बार उसके गलती के कारण मुनी सनक उसे शाप दिया कि तेरा राक्षस योनी में तीन बार जन्म होगा । भगवान ब्रम्हदेवने अपने इच्छा शक्ति के बलपर विश्वनिर्माण करने से पहले मुनि सनक को निर्माण किया था । परंतु सनक मुनि हमेशा पांच-छ: साल के बालक की तरह निर्वस्त्र रहते थे । एक बार वे भगवान विष्णु के दर्शन के उद्देश से उनके राजमहल गये, जयविजयने उन्हे पहचाना नही, क्यो की वे निर्वस्त्र शिशुरूप मे थे और उन्हे महल में प्रवेश करने से रोका । शिशु को अगर उसके मन के मुतागिक चीज न मिले तो वह गुस्सा करता है और जिद्द करता है । उसी तरह गुस्से मे आकर मुनि सनक ने जयविजय को शाप दिया की तेरा तीनबार राक्षस योनी में जन्म होगा यह सुनकर जयविजय ने विष्णुजी से अपनी कहानी सुनाई तो श्रीविष्णुने भी यही कहाँ की तीन बार राक्षस जन्मों के पश्चातही तुम्हे यह पहला रूप प्राप्त होगा । इस कहानीसे एक बात तो सिध्द होती है की मृत फिरसे जन्म लेता है वरना मुनि सनक जयविजय को तीन जन्मों का शाप क्यों देतें और उसे श्रीविष्णु क्यो दोहराते? मनुष्य के त्रिगुण (रज, तन, एवं, सद्) उसके स्वभाव के तीन प्रमुख कारण है ।

सतगुणी मनुष्य की परमेश्वर पर नितांत श्रध्दा एवं विश्वास होता है । रजोगुणी आदमी यक्ष या राक्षस बलशक्ति के जोरपर श्रध्दा रखते है और शक्ति की पुजा करते है, और तमोगुणी मनुष्य भूत - प्रेतोपर विश्वास रखते है । अगर आदमी का बर्ताव सदाचारी हो अगर उसका जीवन पापसे मुक्त हो तो ऐसी व्यक्ती अपना जन्म अगले जन्म में भी नही भूल पाते । उसे पूर्व जन्म की स्मृती होती है ऐसा गीता में कहा में कहा गया है।

श्राध्दों के नियम भी पुर्नजन्म के तत्वोपर बनाये गये है । रजोगुणी आदमी यक्ष या राक्षस बलशक्ति के जोरपर श्रध्दा रखते है और शक्ति की पुजा करते है, और तमोगुणी मनुष्य भूत - प्रतो पर विश्वास रखते है । अगर आदमी का बर्ताव सदाचारी हो अगर उसका जीवन पापसे मुक्त हो ऐसी व्यक्ती अपना जन्म अगले जन्म में भी नही भूलती । उसे पूर्व जन्म की स्मृती होती है ऐसा गीता मे कहा है ।

श्राध्दों के नियम भी पुर्नजन्म के तत्वोपर बनाये गये है । जब पुत्र अपने मृत पिता को पिंडदान करता है तो वह पिंड पित्तरोंतक जरूर पहुचता है । कईयो के दिलमें इस बारे मे कई शंका - आशंका है । उनका कहना है अगर हमारे पुर्वसूरी उनके गुणो के अनुसार पुर्नजन्म लेत है तो हम जो उन्हे अर्पण करते है वह उन्हे किस तरह प्राप्त होता है और उन्हे उसका क्या उपयोग होता है । वैसे देखा जाये तो हम अपने पित्तरो को प्रत्यक्ष कुछ भी नही देते । हमे जो भी देना होता है वह ब्राम्हणो को देते है, और वो ही उनका उपयोग भी करते है । यह बात सही है परंतु यह भी सही है की विश्व की कई बाते या घटना जिनके सच्चाई का हमारे पास कोई ठोस गवाह नही, फिर भी हम उनपर विश्वास करते करते है, श्रध्दा रखते है । अपनी कही तो, किसीपर तो श्रध्दा होनी जरूरी है । हालाकी ऐसे श्रध्दासे या विश्वाससे भौत्तिक लाभ न होता हो फिर भी अपना कोई नुकसान भी तो नही होता है । हम अपने पिढीयोंसे चलते आये जीवन में देखते है की श्राध्द के वक्त रखा हुआ कोई भी भोजन कोई भी खाता है और अन्य अपने जाती बंधूओं को भी बुलाकर उनके साथ सहभोजन का आनंद उठाते है । शायद ही मृत व्यक्ती की अपने वारिसो से भोजन द्वारा इच्छा तृप्ती हो ऐसा कहे तो गलत नही होगा ।

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